प्रभावी संचार किसी भी डॉक्टर-रोगी संबंध की नींव है और यह एक सफल उपचार प्रोटोकॉल के निर्माण का पहला कदम है। अक्सर चिकित्सकों के पास जाने वाले रोगियों कि यह अपेक्षा होती है कि उनकी बात धैर्यपूर्वक सुनी जाएगी और उनके साथ सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार किया जाएगा। आयुर्वेद की शब्दावली और अवधारणाओं के बावजूद रोगियों से इस तरह संवाद करना कि उनके लिए समझना सरल हो कभी-कभी चिकित्सकों के लिए चुनौती पूर्ण हो सकता है।
हालांकि एक “युक्ति” या “युक्ति युक्त बुद्धि” से परिपूर्ण वैद्य इस कमी को पूरा कर सकता है और रोगी से इस तरह सरलता से वार्तालाप कर सकता है कि उसे समझने में आसानी हो और वह निर्धारित नियमों का पालन करने में सक्षम हो। यहां पर कुछ संकेत दिए गए है कि कैसे वैद्य अपने रोगियों के उपचार के लिए इस वार्तालाप अंतर को सरलता से पाट सकते हैं और उपचार की दिशा में एक प्रभावशाली यात्रा आरंभ कर सकते हैं।
आइए इसे समझना शुरू करते हैं
युक्ति क्या है?
युक्तिश्च योजना सा युज्यते (चरक सूत्र स्थान-26/30) अर्थात् “किसी भी तरह की योजना बनाने को ही युक्ति कहते है।” विस्तारपूर्वक, यदि कहें तो युक्ति से तात्पर्य एक ऐसी रणनीति के पूर्ण ज्ञान के इस्तेमाल से है, जिससे किसी भी जटिल परिस्थितियों का समाधान किया जा सकता है। एक आयुर्वेदिक चिकित्सक युक्ति के माध्यम से रोगियों के साथ संवाद में व्याप्त अंतर को पूरा कर सकता है और ऐसे व्याखान तैयार कर सकता है जिसमें रोगियों के स्तर की समझ और तत्परता व्याप्त हो।
आयुर्वेदिक ग्रंथ “युक्तिज्ञ विद्या” के आवश्यकता पर ज़ोर देता है, जिसको चिकित्सक युक्ति में इस्तेमाल करता है। इस तरह का चिकत्सक समझता है कि रोगी को क्या समझाना है और क्या नहीं, जो रोगी की मानसिक और शारीरिक क्षमता के आधार पर निर्धारित होता है।
आयुर्वेद रोगियों को दो भागों में वर्गीकृत करता है: हीन बला (वे जिनमें रोग में संभलने का सामर्थ्य कम हो) और उत्तम बला (वे जिनमें रोग में संभलने का सामर्थ्य अधिक हो)। प्रभावशाली वार्तालाप के लिए रोगियों के प्रकार को पहचानना आवश्यक है।
प्रभावशाली संचार क्या है?
प्रभावशाली संचार कई पहलुओं का मिश्रण है परंतु इसको विस्तारपूर्वक तीन हिस्सों में वर्गीकृत किया जा सकता है, शारीरिक भाषा, वाणी की स्पष्टता, और विषय का ज्ञान।
शारीरिक भाषा
यह कहना अनिवार्य है कि चिकित्सक के मुस्कुराने और स्वागत करने वाले व्यवहार से रोगियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे रोगियों को आराम मिलता है और उन्हें अपने स्वास्थ्य संबंधी विकारों पर खुलकर चर्चा करने का आत्मविश्वास मिलता है।
एक सक्रिय श्रोता होने के नाते, सहानुभूति प्रदर्शित करते समय एक सक्रिय रवैया रखना और आंखो का संपर्क बनाए रखने तथा पुष्टि प्रदान करने से रोगियों पर परेशानियां साझा करते समय सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वास्तविक रुचि दर्शाना और प्रासंगिक प्रश्न पूछने से रिश्ते का विश्वास मज़बूत होता है।
वाणी की स्पष्टता
स्पष्ट रूप से और एक गति में बोलना जिस से रोगी उसका अनुसरण करने में समर्थ हो, वार्तालाप का मूल होना चाहिए। आयुर्वेद के कठिन अवधारणाओं को समझना या अपनाएं जाने वाले उपचार को सरलता से समझना ताकि रोगी के लिए समझना सरल हो। आत्मविश्वास पूर्ण संचार कौशल चिकित्सक की विशेषज्ञता पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और रोगियों को आश्वस्त करता है।
विषय का ज्ञान
यह बिल्कुल स्पष्ट है कि आयुर्वेद का गहन ज्ञान और रोगियों के स्वास्थ्य संबंधी विकारों को व्यापक रूप से समझने में सक्षम होना प्रभावशाली संचार का मूल है। नियमित रूप से पढ़ना और सक्रिय रूप से चर्चा मंचो का हिस्सा बनना तथा चिकित्सा की लगातार विकसित हो रही पद्धतियों से अवगत होना, यह सब एक पूर्ण रूप से सूचित चिकित्सक के लिए योगदान करते है। संचार कौशल को विकसित करना ताकि प्रभावी रूप से निदान और उपचार की योजना रोगी को सरलता से समझ आ सके।
रोगियों से उनके रोग के बारे में संचार करना
अवलोकन और उपचार
किए गए अवलोकन को स्पष्ट रूप से बताना और उपचार को सरल व समझने योग्य शब्दों में बताना ही एक उत्तम संचार-रणनीति है।
कारण और जीवनशैली के कारक
रोग का मूल कारण जानने के लिए रोगियों को एक संभावित जीवनशैली की आदतों के कारक जो रोग निवारण में सहयोग देते हैं; को समझाना होगा। अंततः कहा जा सकता है कि, रोगियों को उनके स्वास्थ्य के प्रति बेहतर विकल्प उपलब्ध कराना है।
उपचार योजना की रूपरेखा
उन्हें यह समझने के लिए समय दें कि कौन सी दवा उनको लेनी चाहिए, सर्वोत्तम स्वास्थ्य के लिए आहार संबंधी सुझाव और जीवनशैली में बदलावों का पालन करने की महत्ता क्या है। हीन बला रोगियों के लिए सरलीकृत व्याख्यान प्रदान करें और उनको भावुक करने तथा विस्तृत जानकारी देने से बचें।
उम्मीदें निर्धारित करना
उपचार के अपेक्षित परिणामों और सुधारों कि समय सीमा को स्पष्ट रूप से बताएं। यह रोगी कि अपेक्षा को प्रबंधित करने और उनके उपचार संबंधी तनावों को कम करने में सहायक होगा।
पालन करें
प्रगति का अवलोकन करने और चिकित्सा संबंधी योजनाओं को समायोजित करने के लिए अनुवर्ती अपॉइंटमेंट (नियुक्ति) के महत्व पर ज़ोर देना आवश्यक है। जब मरीज़ को अगली नियुक्ति के लिए दुबारा बुलाने की आवश्यकता हो तो उसे स्पष्ट निर्देशन प्रदान करें।
उपसंहार
प्रभावी संचार रोगी की चिकित्सा शुरू करने के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू है। आयुर्वेदिक चिकित्सक युक्ति या रणनीति से युक्त ज्ञान से बीच में व्याप्त अंतर को सफलतापूर्वक पूरा कर सकता है और जिन लोगों का इलाज़ किया जा रहा है उन्हें समझने के साथ-साथ उनसे उपचार की योजनाओं को पालन करवा सकता है। चिकित्सक को एक सकारात्मक आचार – व्यवहार करने वाला, स्पष्ट भाषी, और मरीजों के साथ खुला संबंध स्थापित करने से जुड़े विषय का पूर्ण जानकार होना चाहिए। चिकित्सक को रोगी के रोग संभालने के स्तर को समायोजित करना चाहिए, चाहे वो हीन बला हो या उत्तम बला, जो कि संवाद को समझने की क्षमता बढ़ाती है और जो एक प्रभावी और इच्छा के अनुरूप परिणाम देती है।